Tuesday 19 May 2015

सूचना भवन, दुमका 

प्रेस विज्ञप्ति

संख्या 111 दिनांक - 18/05/2015
दुमका दिनांक 18 मई 2015,
सूचना भवन, दुमका के सभा कक्ष में झारखण्ड वन अधिकार मंच पैक्स एवं जिला कल्याण कार्यालय, दुमका द्वारा वन अधिकार अधिनियम 2006 के सफल कार्यान्वयन हेतु जिला स्तरीय एक दिवसीय प्रषिक्षण कार्यषाला का आयोजन उपायुक्त, दुमका श्री राहुल कुमार सिन्हा की अध्यक्षता में  किया गया। कार्यषाला में उपायुक्त ने कहा कि वनों पर आश्रित जीवन को कानूनन अधिकार दिया गया है। इस कार्यषाला में सभी प्रतिभागी अपनी अपनी व्यवहारिक कठिनाइयों को भी सबके सामने रखें और उस पर विचार करें। कानून को लगु किये जाने में आने वाली व्यवहारिक कठिनाईयों को भी जानना चाहिए। कार्यषाला में अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वनों पर अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 के विषय में श्री षिषिर टुडू द्वारा विस्तृत जानकारी दी गयी। इससे संबंधित अधिकारों के विषय में भी जानकारी दी गई जो इस कानून के अंतर्गत निम्नलिखित तीन प्रकार का अधिकार पत्र (पट्टा) देने का प्रावधान है:-
1. व्यक्तिगत अधिकार:
10 एकड़ (4 हेक्टेयर) की सीमा मात्र उनलोगों पर लागू है जो अधिनियम की धारा 3 (क) के अंतर्गत दावा करते हैं। जो लोग अधिनियम की धारा 3 (1) (च) (छ) और (ज) के अंतर्गत वन भूमि पर दावा करते हैं, उनके ऊपर यह सीमा लागू नहीं होगी।
यदि दावेदार विवाहित है तो पट्टा पति और पत्नी के संयुक्त नाम पर बनेगा। यह वंशानुगत होगा और अहस्तांतरणीय होगा।
2. सामुदायिक अधिकार
3. स्ंारक्षण, संवर्द्धन और प्रबंधन का अधिकार
पात्रता
1. धारा 4 (3) के अनुसार वन भूमि पर पट्टा के लिए अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी, दोनों के लिए वन भूमि पर 13 दिसबर 2005 के पहले से कब्जा होना अनिवार्य है।
2. अन्य परंपरागत वन निवासी के लिए वन भूमि पर 3 पीढि़यों से कब्जा होना चाहिए। तीन पीढ़ी यानी 75 वर्ष।
वन अधिकार अधिनियम 2006 को लागू करने के लिए अधिकृत संस्थाएं
1. ग्राम सभा (वन अधिकार समिति) - ग्राम सभा (वन अधिकार समिति) अन्तर्गत ग्राम सभा की बैठक में कम से कम आधे सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य है। साथ ही ग्राम सभा अपने इस अधिकार का निष्पादन, एक वन अधिकार समिति को गठित करके उसके द्वारा करता है। इस समिति में न्यूनतम 10 और अधिकतम 15 सदस्य होंगे। उनमें कम से कम तिहाई महिलाएँ होनी अनिवार्य है। उस ग्राम सभा में अनुसूचित जनजाति के सदस्य हैं तो कम से कम दो तिहाई अनुसूचित जनजाति के सदस्यों का होना अनिवार्य है।
2. अनुमंडल स्तरीय वन अधिकार समिति - अनुमंडल स्तरीय वन अधिकार समिति अन्तर्गत अनुमंडल अधिकारी (उपखंड अधिकारी) - अध्यक्ष, अनुमंडल स्तरीय वन अधिकारी, ब्लाॅक या तहसील स्तर की पंचायतों के तीन सदस्य। कम से कम दो अनु. जनजाति सदस्य जो वन निवासी हैं या आदिम जनजाति हैं। जहां अनु. जनजाति नहीं हैं वहां अन्य परंपरागत वन निवासियों के दो सदस्य और एक महिला सदस्य होगी। जनजातीय कल्याण विभाग के अनुमंडल स्तरीय अधिकारी का होना अनिवार्य है।
3. जिला स्तर की समिति - जिला स्तर की समिति अन्तर्गत जिला कलक्टर या उपायुक्त - अध्यक्ष, संबद्ध वन प्रमंडल अधिकारी या संबद्ध उप वन संरक्षक - सदस्य, जिला स्तर की पंचायत के तीन सदस्य, जनजातीय कल्याण विभाग के जिला स्तरीय अधिकारी या समकक्ष होंगे।
4. राज्य स्तर की निगरानी समिति - राज्य स्तर की निगरानी समिति अन्तर्गत मुख्य सचिव - अध्यक्ष, सचिव, राजस्व विभाग - सदस्य, सचिव, जनजातीय या समाज कल्याण विभाग  - सदस्य, सचिव, वन विभाग - सदस्य, सचिव, पंचायती राज विभाग - सदस्य, प्रधान मुख्य वन संरक्षक - सदस्य होंगे।
जनजातीय सलाहकार परिषद (टी
एसी) के तीन अनु. जनजातीय सदस्य जिनके नामों का निर्देशन जनजातीय सलाहकार परिषद के अध्यक्ष द्वारा किया जाएगा। जहां टीएसी नहीं है वहां अनु. जनजाति के तीन सदस्यों के नामों का निर्देशन राज्य सरकार द्वारा किया जाएगा।
कार्यषाला में उपायुक्त, दुमका के अलावे वन प्रमंडल पदाधिकारी, जिला कल्याण पदाधिकारी, भूमि सुधार उप समाहत्र्ता, सभी अंचल अधिकारी, वन क्षेत्र पदाधिकार, दुमका तथा संबंधित पदाधिकारी एवं कर्मचारीगण उपस्थित थे।



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