Saturday 27 February 2016

दुमका, दिनांक 27 फरवरी 2016
प्रेस विज्ञप्ति संख्या - 090 

हिजला संस्मरण
अथाह जन सैलाब ने बताया हिजला जीता है सबके हृदय में...
- अजय नाथ झा, क्षेत्रीय उप निदेषक जनसम्पर्क

 
कल हिजला मेला का पर्यवसन हुआ। राजकीय महोत्सव के रूप में इस जनजातीय मेला की जड़ें कितनी गहरी हो गई है। कल हिजला की धरती इसका गवाह बनी। समन्दर की लहरों का - आसमां के बादलों का - धरती की करवटों का - अपना ही अनुषासन होता है - इसपर कोई नियम नहीं थोपा जा  सकता है। ऐसा ही महसूस हुआ हिजला में। मेला की चाट पकौड़ी हो, झूला हो, मौत का कुँआ हो - पर सबसे अधिक मन जहाँ रमता हुआ दिखा वो सांस्कृतिक नृत्य संगीत था। पारंपरिक गंवई सुगन्ध से भरा खेल था। 
कबड्डी, वाॅलीबाॅल, खो-खो, के साथ बोरा दौड़, घड़ा दौड़, जिलेबी दौड़, लंबी कूद, तीरंदाजी- भारी भीड़ पूरे संताल परगना से थी।
मेला के भीतरी कला मंच की शमा रात 9 बजे से रौषन होती थी। सबके दर्षक भी तय थे। बाहरी मैदान में 7 दिनों तक 38 कार्यक्रम पूरे प्रमंडल से हुए। बाहरी कला मंच पर सायं 8ः30 बजे से तक 13 कार्यक्रम हुये इनमें बनारस से प्रख्यात गायिका ममता शर्मा, शांति निकेतन से आये मणिपुरी नृत्य तथा सराय केला खरसावां से आये छउ नृत्य ने चार चाँद लगा दिये। 
समारोह का उद्घाटन संताल संस्कृति से छोटानागपुर होते हुये आसाम के बिहु तक को समेटे हुए था। पारंपरिक स्वागत में लुप्त हो रहे सकवा सिंगा मान्दन भेड़ आदि का वादन प्रतीक था कि यह मेला अपनी परम्पराओं और जड़ों से आज भी दूर नहीं हुआ है। 
समापन में ग्रीस लगा रोला अजेय रह गया। मानो कह रहा हो कि यह मेला यहाँ अंत नहीं हो रहा - सबके हृदय में जी उठा है। हिजला अजेय था अजेय है। 
19 फरवरी को हजारीबाग के पुनीत साव और उनके मित्र मेला का रूप देखकर हतप्रभ थे। वहीं कई लोगों ने अपने भीतरी कला मंच बाल कवि से लेकर प्रतिष्ठित कवियों की गोष्ठी, नषामुक्ति, महिला सषक्तीकरण आदि पर गम्भीर परिचर्चा करता हुआ दिखा।
पाकुड़ से आई उर्मिला हाँसदा और टुनी हेम्ब्रम ने कहा कि हिजला पर्वत का सौन्दर्यीकरण होना चाहिये-पर्यटन की दृष्टि से इस पर्वत का विकास समय की मांग है। दुमका जरमुण्डी के बबलु मुर्मू, गोड्डा की सहाबती कुमारी, देवघर के धनमेजय, कुकुरतोपा की कुमुदिनी हेम्ब्रम ने मेला क्षेत्र में स्थायी आदर्ष कृषि प्रक्षेत्र खोलने का सुझाव दिया। भागलपुर के नन्द कुमार भी हिजला को कृषि संदेष का प्रचारिक केन्द्र बनाने का सुझाव दिया। बोकारो के पप्पू दुर्गापूर के सुनील टुडू, षिकारीपाड़ा दुमका की मोनिका, पूनम, प्रियंका ने मयूराक्षी नदी के तट का सौन्दर्यीकरण का सुझाव दिया। जल संरक्षण, जल संचयन के साथ मयूराक्षी के किनारे उपवन विकसित हों यह प्रयास किया जाय। 
कुरूवा के बाबूलाल मराण्डी, गोड्डा के राजकुमार मंडल, खिजूरिया की तमन्ना खातून, धनबासा के बुदिलाल सोरेन ने कहा कि मेला क्षेत्र का सीमांकन हो तथा इसका क्षेत्र विस्तारित कर निर्धारित किया जाये। चिरूडीह की मुनमा मुर्मू, परसोती के राजेन्द्र राय, सितपहाड़ी की अन्नू टुडू ने मेला क्षेत्र में सरकारी कार्यालय आदि न खोले जाने का सुझाव दिया। 
लिट्टीपाड़ा की मंजू सोरेन ने कहा कि बाहरी कलामंच और बड़ा तथा भव्य हो। इसे खेल मैदान से अलग बनाया जाय ताकि दिन में भी मंच पर कार्यक्रम हो। कई लोगों ने जिनमें देवघर की बच्ची देवी जमाताड़ा के नील हेम्ब्रम चिहरबनी की अमृता मंडल ने मेला क्षेत्र में ओपेन थियेटर बनाने की बात कही। 
ऐसे ही बहुमूल्य सुझाओं के साथ यह मेला अतीत का हिस्सा हो गया। मेला की सबसे बड़ी खासियत जो महसूस हुई वह थी इसका ठेठ गंवई अंदाज। लौटता हुआ जन सैलाब की जाम में फंसा यह सोच रहा था ‘‘ये जिंदगी के मेले.... दुनिया में कम न होंगे अफसोस हम न होंगे।’’





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