Wednesday, 9 November 2022

दिनांक-2 नवंबर 2022 प्रेस विज्ञप्ति संख्या-1314

 दिनांक-2 नवंबर 2022

प्रेस विज्ञप्ति संख्या-1314


राजकीय पुस्तकालय दुमका में आयोजित रेव. पी ओ बोडिंग मेमोरियल संथाली लिटरेचर फेस्टिवल का दूसरा सत्र "संथाल हूल-कारण, विवरण और परिणाम" पर केंद्रित था।


कार्यक्रम के दूसरे सत्र में उक्त विषय पर डॉ धुनी सोरेन,दुर्गु सोरेन,मसूदी टुडू,जॉय टुडू ने अपने अपने विचारों को लोगों के समक्ष रखा।


डॉ धुनी सोरेन ने कहा कि हूल एक ऐसा विषय है जिसके बिना संथाल समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है।संथाल हूल कोई विद्रोह या आंदोलन नहीं था, बल्कि यह ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ युद्ध था।यह युद्ध शोषण और अत्याचार के खिलाफ था।


डॉ धुनी सोरेन कहते हैं कि यह वक़्त हमें अपने जिम्मेवारी को समझने की है।आज हम सभी देश सहित विदेश के विभिन्न हिस्सों में रहते हैं लेकिन इससे आदिवासी समाज को कोई विशेष लाभ नहीं मिल रहा है।हमें आदिवासी समाज को मुख्यधारा में लाने के लिए कई कार्य करने होंगे जो सामूहिक प्रयास से ही संभव है।उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज को शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।सभी अपने बच्चों को शिक्षित करें।बच्चों को स्कूल अवश्य भेजें।जब तक हमारे बच्चे शिक्षित नहीं होंगे तब तक वे अपने अधिकार को नहीं पा सकेंगे।उन्होंने कहा कि पुस्तकों के ज्ञान से हम रोजी रोटी के लिए सक्षम हो जाते हैं।लेकिन बाहरी शिक्षा हमें अपने समाज से ही मिल सकता है जो वर्तमान समय की जरूरत है।आदिवासियों को सशक्त होने की जरूरत है।उन्होंने कहा कि संथाल हूल के बाद भी समाज को कहीं न कहीं उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है।इसे दूर करने की जरूरत है।


जॉय टुडू ने कहा कि शोषण का ही परिणाम संथाल हूल था।सुधखोर महाजन के शोषण का परिणाम संथाल हूल था।कहा कि हम ऐसे लोगों के वंशज हैं जिन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के दांत खट्टे कर दिए थे।उन्होंने कहा कि संथाल हूल की जनकारी अभी भी कई लोगों को नहीं है।बच्चे संथाल हूल के बारे में नहीं जानते हैं।हमें संथाल हूल के बारे में लोगों को बताना होगा।उन्होंने कहा कि कोरोना ने हमें कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं दी हैं।कोरोना ने हमें बताया कि कोई सुपर पावर कार्य नहीं करता है।हमें अपनी रक्षा स्वयं करनी पड़ती है।कहा कि आदिवासी जीवन शैली पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरण के साथ जीवन यापन करने की शिक्षा देती है।हमें आदिवासी समाज को मुख्यधारा से जोड़ना होगा।


मसूदी टुडू ने कहा कि संथाल विद्रोह जिसे क्षेत्रीय तौर पर “संथाल- हूल” के नाम से बेहतर जाना जाता है झारखंड के इतिहास में होने वाले सभी जनजातीय आंदोलनों में संभवत: सबसे व्यापक एवं प्रभावशाली विद्रोह था। यह वर्तमान झारखंड के पूर्वी क्षेत्र जिसे संथाल परगना “दामन-ए-कोह” (भागलपुर व राजमहल पहाड़ियों के आस पास का क्षेत्र) के नाम से जानते हैं, में 1855-56 में घटित हुआ था। यह क्षेत्र झारखण्ड के सबसे बड़े जनजातीय समूह “संथालों” का निवास स्थल था।संथालों के आक्रोश का मुख्य कारण यह था कि ब्रिटिश काल में साहूकार तथा औपनिवेशिक प्रशासक दोनों ही संथालों का शोषण करते थे।आदिवासी चूँकि पढ़े -लिखे नही थे ,अतः उनसे जालसाजी कर तय दर से अधिक ब्याज वसूलना व यहाँ तक की उनकी जमीनों को भी हड़प लेना आम बात थी। जब वे ऐसी शिकायतें लेकर प्रशासन या पुलिस के पास जाते तो भी उन्हें निराशा ही हाथ लगती थी।इसी बीच ब्रिटिश सरकार ने भागलपुर -वर्दमान रेल परियोजना के तहत रेल लाइनें बिछाने के लिए बड़ी संख्या में संथालों को बेगार मजदूरों के तौर पर बलात भर्ती किया।बहुत ही कम मजदूरी उन्हें दिया जाता था तथा अत्यधिक कार्य उनसे लिया जाता था। इस घटना ने संथाल विद्रोह के तात्कालिक कारण का काम किया।


दुर्गु सोरेन ने कहा कि शोषण का परिणाम ही संथाल हूल था।अत्याचार की पराकाष्ठा पार होने के बाद आदिवासी समाज ने विद्रोह किया जिससे ईस्ट इंडिया कंपनी  को हिला कर रख दिया था।इस दौरान उन्होंने और भी कई महत्वपूर्ण तथ्यों से उपस्थित लोगों को अवगत कराया।


सत्र के अंत मे उपस्थित लोगों ने वक्ताओं से कई सवाल भी पूछे जिसका संतोषजनक जवाब दिया गया।





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