दिनांक-2 नवंबर 2022
प्रेस विज्ञप्ति संख्या-1317
राजकीय पुस्तकालय परिसर, दुमका में आयोजित रेव. पीओ बोडिंग मेमोरियल संथाली साहित्य महोत्सव के चौथे सत्र" में संथाली साहित्य का उद्भव एवं विकास विषय पर चर्चा हुई।
इस सत्र में आंद्रेयास टुडू, गब्रिएल सोरेन, डॉ विश्वनाथ हांसदा, बबलू टूडू, सुंदर मनोज हेंब्रम में अपने विचारों प्रस्तुत किया।
आंद्रेयास टुडू ने कहा कि संथाली एक प्राचीन भाषा है। यह अत्यधिक विकसित साहित्यिक और पूर्व-वैदिक काल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। परंपरागत संथाली भाषा और साहित्य का विकास और प्रचार 1870-75 के बाद से कुछ विदेशी साहित्य प्रेमियों द्वारा शुरू किया गया। जब रघुनाथ मुर्मू ने 'ओलचिकी लिपि' का विकास किया और उसी में अपने नाटकों की रचना की, तब से आज तक वे एक बड़े सांस्कृतिक नेता और संताली के सामाजिक-सांस्कृतिक एकता के प्रतीक रहे। गुरु गोमके ने भाषा के माध्यम से सांस्कृतिक एकता के लिए लिपि द्वारा जो आंदोलन चलाया वह ऐतिहासिक है। उन्होंने कहा - "अगर आप अपनी भाषा - संस्कृती , लिपि और धर्म भूल जायेंगे तो आपका अस्तित्व भी ख़त्म हो जाएगा।
गब्रिएल सोरेन ने संथाली भाषा में अपने विचारों को रखे हुए कहा कि साहित्य का इतिहास 1843 से शुरू हुआ। पीओ बोडिंग ने गांव-गांव घूमकर संथालो की संस्कृति को जाना और लिखा। बाइबल को भी संथाली लिपि में लिखा। उन्होंने संथाली स्क्रिप्ट, संथाली डिक्शनरी एवं व्याकरण में अपना बड़ा योगदान दिया। उन्होंने संथालों से संबंधित 64 अलग-अलग विषयों के बारे में अपनी विचारों को लिखा। पीओ बोडिंग संथालों के बीच रहकर 200 से अधिक किताबें लिखी। आज भी उनके डिक्शनरी एवं व्याकरण का उपयोग किया जाता है। यदि संथाली भाषा को और आगे ले जाना है तो हमें इस प्रकार के कार्यक्रम हमेशा करने चाहिए।
डॉ विश्वनाथ हांसदा ने कहा कि कॉलेज स्कूल एवं कॉलेज के लिए यूपीएससी और जेपीएससी के लिए संथाली में किताबें लिखे गए। संथालों ने जब अपनी भाषा में अपने परिचितों की रचनायें पढ़ी तो उनका उत्साह बढ़ने लगा। भगीरथ की तरह संथाली भाषा और साहित्य की गंगा को संथाली भाषी लोगों के घर-घर तक पहुंचाया। आज के संथाली साहित्य का रूप देखकर हम तो इसके अतीत का अनुमान नहीं कर सकते। आज संथाली प्राथमिक विद्यालयों से लेकर झारखण्ड के विश्वविद्यालयों में स्नातकोत्तर स्तर तक पढ़ायी जा रही है। इतना ही नहीं, समस्त भारतीय भाषाओं के बीच संथाली ने अपनी एक खास पहचान भी बना ली है। भारत के ही नहीं, अपितु विदेश के भी अनेक विद्वान संथाली भाषा और साहित्य में खासी रुचि दिखाने लगे हैं।
बबलू टूडू ने कहा कि साहित्य क्या है कहां से आया साहित्य का अर्थ साथ में जुड़ा हुआ है साहित्य समाज का आईना है साहित्य-साहित्य एक आवाज है इसलिए कहा गया है कि साहित्य समाज का आईना है अभी के समय में हम लोग को ही हमारे समाज के बारे में लिखना है। युवाओं को आगे आकर संथाली साहित्य में लिखना चाहिए। आज के इस कार्यक्रम से बहुत सारे युवाओं को प्रेरणा मिलेगी है उम्मीद है कि वह लिखेंगे अपनी भाषा को और भी आगे लेकर जाएंगे।
इस दौरान सुंदर मनोज हेंब्रम ने अपने विचारों को प्रस्तुत करते हुए लिखित साहित्य के बारे में विस्तृत जानकारी दें। उन्होंने उल्लेख के माध्यम से संथालों के संघर्ष के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि संथालो ने होमलैंड बनाने में बहुत संघर्ष किया है। संथाल समुदाय मजबूती की तरह आगे आए और आगे बढ़ते जा रहे हैं।
इस दौरान सभी वक्ताओं को मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया।
अंतिम सत्र में चुंडा सोरेन सिपाही, निर्मला पुतुल, बिमल हांसदा ने अपनी कविताओं के माध्यम से संथाल के संघर्ष एवं संथाल हूल के बारे में बताया। अपनी-अपनी लिखित कवितायों को प्रस्तुत किया।
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