Friday, 23 October 2015

दुमका, दिनांक 19 अक्टूबर 2015 प्रेस विज्ञप्ति संख्या - 404 

भारतीय रेड क्राॅस सोसााईटी के दुमका शाखा के द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 पर सोमवार को रेड क्राॅस भवन में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें राज्य के सूचना आयुक्त हिमांशु शेखर चैधरी मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए। अपने संबोधन में राज्य सूचना आयुक्त ने कहा कि सूचना का अधिकार (आरटीआई) का सार्वजनिक हित में इस्तेमाल करें। रेड क्राॅस सोसाईटी के सचिव अमरेन्द्र यादव ने सूचना आयुक्त समेत अतिथियों का स्वागत किया जबकि मंच का संचालन सोसाईटी के वाईस चेयरमैन राज कुमार उपाध्याय ने किया। 
सूचना आयुक्त हिमांशु शेखर चैधरी ने कहा कि 95 प्रतिशत मामले अपने हित से जुड़े रह रहे हैं। उन्होंने कहा कि शासन और प्रशासन में हो रहे खर्च की जिम्मेदारी तय करने के उद्देश्य से यह एक्ट लाया गया था। सूचना वह है जो संधारित है। सूचना का सृजन नहीं हो सकता है। काल्पनिक चीजों का जवाब नहीं हो सकता है। आयोग के साथ आरटीआई कार्यकताओं को भी अपनी विश्वसनीयता बनाये रखने के बारे में चिंता करनी होगी। उन्होंने आरटीआई के दुरूपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए सूचना का अधिकार ही तंत्र को प्रजातंत्र बनाता है, इसका उपयोग नहीं होगा तो दुरूपयोग करनेवाले हावी हो जाएंगे। 
सूचना आयुक्त ने कहा कि आयोग सूचना प्राप्त करने में आ रही कठिनाईयों के बारे में अवगत है और उसके निदान के दिशा में लगातार काम कर रहा है। 3 माह में आयोग का वेबसाईट उपलब्ध होगा और यदि इसके लिए राशि नहीं मिलती तो वह अपने वेतन से इसे शुरू करेंगे। उन्होंने कहा कि अभी तक केवल रांची में ही सुनवाई होती है पर आयोग जिला स्तर पर अपील की सुनवाई करने पर विचार कर रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि सूचना नहीं देने के लिए प्रथम अपील पदाधिकारी भी दोषी माना जायेगा और उसपर कार्रवाई की जायेगी। सूचना आयुक्त चैधरी ने कहा कि जन सूचना पदाधिकारी एवं प्रथम अपीलीय पदाधिकारी का बोर्ड लगाने और पीआईओ के द्वारा सूचनाओं को सार्वजनिक करने के नियम का अनुपालन करवाया जा रहा है। जागरूकता कार्यक्रम को जिला से लेकर प्रखण्ड एवं पंचायत स्तर तक कार्यक्रम आयोजित करने की योजना है हलांकि यह कार्मिक विभाग की जिम्मेदारी है। 
सूचना आयुक्त ने कहा कि निजता से संबंधित सूचनाएं नहीं दी जा सकती है। सार्वजनिक हित में कैशबुक से लेकर प्रमाणपत्र की काॅपी तक कुछ भी मांगी जा सकती है। आरटीआई एक्ट ने इतनी ताकत दी है कि आप सड़क के नमूना लेकर उसकी जांच भी करवा सकते हैं। उन्होंने कहा कि आरटीआई के लड़ाई में आपकों प्रताडि़त और हतोत्साहित करने का पूरा प्रयास किया जायेगा पर आप उम्मीद न छोड़े तबतक पूछते रहें जबतक कि जवाब मिल नहीं जाएं। उन्होंने यह भी बताया कि सूचना नहीं देने पर आयोग को 250 रूपये प्रतिदिन के दर से 25000 रूपये तक फाईन करने, आवेदक को परेशान करने के एवज में क्षतिपूर्ति दिलवाने जिसकी कोई सीमा नहीं है, और 20(2) के तहत विभागीय कार्रवाई का अधिकार है। उन्होंने बताया कि दुमका के डीएफओ को सशरीर हाजिर होने के लिए आयोग के ओर से नोटिश जारी किया गया है क्योंकि नियम से अलग यहां प्रधान लिपिक को जन सूचना पदाधिकारी बना दिया गया है। दुमका डीएफओ से पूछा गया है कि उन्होंने किस नियम या सर्कुलर के आधार पर प्रधान लिपिक को पीआईओ बनाया और इस बारे में अखबार में और सार्वजनिक रूप से सूचना प्रकाशित की या नहीं। 
पीयूसीएल के महासचिव अरविन्द वर्मा ने कहा कि जन सूचना पदाधिकारी या तो समय पर सूचना नहीं देते या गोल मटोल जवाब देते हैं। सिविल कोर्ट एवं हाईकोर्ट तो सूचना देता ही नहीं है। पुलिस विभाग तो सूचना मांगने पर आवेदक को धमकाती है। सूचना आयोग में भी दो-दो साल से मामले लंबित है। आयोग जबतक दण्डित नहीं करेगा, सूचनाएं नहीं मिल पायेगी। आरटीआई कार्यकर्ता एहतेशाम अहमद ने कहा कि इंजिनियरिंग विभागों में आरटीआई का दुरूपयोग हो रहा है। नगर परिषद व अंचल कार्यालय तो सूचना देते ही नहीं। प्रथम अपीलीय अधिकारी पर कार्रवाई नहीं होने से वहां भी अपील में सूचना नहीं मिलती है और रांची जाने का खर्च सब लोग नहीं उठा सकते हैं। 
अधिवक्ता कुमार प्रभात ने कहा कि आरटीआई दूसरी आजादी है। यह मौलिक अधिकार है। इसका उद्देश्य सरकार को जवाबदेह और पारदर्शी बनाना है। आवेदक से कारण नहीं पूछा जा सकता है और अपील में जाने के बाद कोई फी नहीं देय होती है। उन्होंने कहा कि आरटीआई के तहत हाईकोर्ट के द्वारा मंशा पूछने का प्रावधान आरटीआई के मूल भावना के खिलाफ है। सूचना देने के बजाय परेशान करने के लिए 15 रूपये का फी और असंजक मुद्रा से लेकर फारमेट तक का प्रावधान बना दिया गया है। नगर परिषद अध्यक्ष अमिता रक्षित ने कहा आरटीआई से भ्रष्टाचार को उजागर और दोषी को दंडित किया जा सकता है पर इसका इस्तेमाल जानकारी के लिए कम और ब्लैकमेलिंग के लिए अधिक हो रहा है। आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष पंजियारा एवं मानस दास ने सूचना आयुक्त से कई सवाल किये जिसका उन्होंने विस्तार से जवाब दिया।

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