Tuesday 14 February 2017

दुमका, 14 फरवरी 2017 प्रेस विज्ञप्ति संख्या - 102
राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव - लोक साहित्य पर परिचर्चा 
राजकीय जनजातीय हिजला महोत्सव 2017 में भीतरी कला मंच पर लोक साहित्य पर रसका टुडू की अध्यक्षता में एक परिचर्चा आयोजित की गई। परिचर्चा में अपने सम्बोधन में पीटर हेम्ब्रम ने कहा कि संथाली और इसके विकास के लिए संथाली समाज को ही आगे आना होगा। नथानियल मरांडी ने कहा कि सरकार के प्रयासों से संथाली भाषा को प्राथमिक षिक्षा में शामिल कर लिया है। परन्तु इसके प्रचार प्रसार के लिए हम सबो को आगे आना होगा। मानुएल सोरेन ने कहा कि किसी भी भाषा के विकास में षिक्षा का अपना महत्व है। शैक्षणिक परिवेष में लोक भाषा का परिचय विस्तार सबसे महत्वपूर्ण है। सुभाष हेम्ब्रम ने कहा कि लोक साहित्य के अभाव में ऐसी कई चीजें हैं जिसका हा्रस हो जाता है, जिसका अस्तित्व में रहना आवष्यक हो जाता है। विद्यापति झा ने अपने सम्बोधन में कहा कि लोक भाषा का मूल साहित्य में कोई विकल्प ही नहीं है। ऐसी कई बाते हैं जिसे सिर्फ लोक भाषा में ही व्यक्त किया जा सकता है। अवसर पर अपने संबोधन में पानेसल टुडू ने कहा कि लोक साहित्य सरकार और आम जनों के बीच की दूरी को कम कर सकता है। नलिनी कान्त ठाकुर ने अपने संबोधन में आदिवासी समाज से आह्वान किया कि वे एक धूरी बनें और साहित्य और संस्कृति के माध्यम से विष्व का मार्गदर्षन करें। डा रामचन्द्र राय ने कहा कि साहित्य का अर्थ समाज का हित होता है। लोक साहित्य बनावटी बातों से अलक अपने स्वाभाविक स्वरूप में ही स्वीकार्य होता है। अवसर पर मंच संचालन करते हुए अंजनी शरण ने कहा कि लोक साहित्य का प्रवेष अवचेतन तक है और इसलिए अन्य कोई भी माध्यम इतना प्रभाव नहीं डाल सकती। धन्यवाद ज्ञापन गौर कान्त झा ने किया। 
इस अवसर पर षिक्षक षिषिर कुमार घोष, वंदना श्रीवास्तव, मदन कुमार, सुरेन्द्र नारायण यादव, अंकित कुमार पाण्डेय आदि मौजूद थे।




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