Monday 13 February 2017

दुमका, 13 फरवरी 2017 प्रेस विज्ञप्ति संख्या - 094

बेटी बचाओ के संदर्भ में महिला सषक्तीकरण पर परिचर्चा
राजकीय जनजातीय हिजला महोत्सव 2017 में भीतरी कला मंच पर बेटी बचाओं के संदर्भ में महिला सषक्तिकरण विषय पर परिचर्चा आयोजित की गयी। परिचर्चा में मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद नगर पर्षद अध्यक्षा अमिता रक्षित ने भारतीय समाज में महिलाओं को शक्ति, धन और विद्या की देवी मानने के बावजूद महिलओं की दयनीय स्थिति पर चिन्ता प्रकट करते हुए इस हेतु महिलाओं एवं पूरे समाज को जागरूक किये जाने की आवष्यकता जतलायी।
महिलाओं की संस्था वी की सचिव सिंहासन कुमारी ने कहा कि स्वस्थ बेटी ही आगे चलकर स्वस्थ मां बनती है जो स्वस्थ बच्चे को जन्म देती है। स्वस्थ बच्चा ही आगे जाकर देष का सबल मानव संसाधन बनता है।
अपने संबोधन में अषोक सिंह ने कहा कि आदिवासी समाज से तथाकथित सभ्य समाज को बहुत कुछ सीखने की आवष्यकता है। कारण आदिवासी समाज में दहेज प्रथा, कन्या भू्रण हत्या आदि जैसी कुरीतियां नहीं हैं।
मेरिनिला मरांडी ने समाज द्वारा महिलाओं को सिर्फ भोग की वस्तु समझे जाने पर क्षोभ व्यक्त किया उन्होंने महिला और पुरूषांे के साथ समान वर्ताव किये जाने पर बल दिया।
सुषांति हांसदा ने कहा कि पति का विष्वास किसी महिला को एक मुकाम दे सकता है। परन्तु एक पिता द्वारा अपने बेटी पर किया गया विष्वास उसे जीवन मंे आत्मनिर्भर बनायेगा।
पीटर हेम्ब्रम ने इस बात पर क्षोभ प्रकट किया कि एक तरफ हम मां की विभिन्न रूपों में पूजा करते हैं दूसरी ओर महिषासुर बनकर स्वयं उसकी हत्या करते हैं।
विद्यापति झा ने कहा कि महिलाओं की समाज में दयनीय स्थिति सिर्फ भारत ही नही पूरे विष्व की समस्या है। उन्होने महिला सषक्तिकरण हेतु संवैधानिक एवं कानुनी पहलुओं की चर्चा की।
धनमुनी किस्कु ने परिवार हेतु महिला की आवष्यकता को रेखांकित किया।
अंजनी शरण ने कहा कि बेटा या बेटी होना ईष्वरीय वरदान है। बेटी के प्रति भेदभाव होना एक मनोदषा है जिससे निकलना जरूरी है।
नीतु भारती ने बेटियों के प्रति समाज में व्यापक नकारात्मक भाव को खत्म करने की आवष्यकता जतलाई।
प्रियंका चक्रवर्ती ने अपने संबोधन में कहा कि बेटी के बिना संसार में कुछ भी संभव नहीं है। आज अगर हम बेटी को न बचाये ंतो एक समय ऐसा आयेगा जब सम्पूर्ण मानव का अस्तित्व संकट में पड़ जायेगा।
परिचर्चा का संचालन षिक्षक मदन कुमार ने किया।

इस अवसर पर झारखण्ड कलाकेन्द्र के प्राचार्य गौर कान्त झा, मनोज कुमार घोष, जिवानन्द यादव, कुणाल झा, अंकित कुमार पाण्डेय तथा सौरभ सिन्हा के अलावा बड़ी संख्या में महिलायें एवं अन्य मेला घुमने वाले दर्षक मौजूद थे।






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