दिनांक- 16 अप्रैल 2022
प्रेस विज्ञप्ति संख्या-0328
राजकीय पुस्तकालय में आयोजित साहित्य उत्सव का तीसरा सत्र आदिवासी साहित्य दशा और दिशा पर केंद्रित रहा। जिसमें साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार से सम्मानित अनुज लुगुन एवं वरिष्ठ आदिवासी लेखक महादेव टोप्पो ने अपने अपने विचार व्यक्त किए।
सत्र का संचालन अनुज लुगुन ने किया। इस सत्र में अनुज लुगुन ने कहा कि जब हम आदिवासी साहित्य की बात करते हैं तो आदिवासी जीवन और सांस्कृति की बात होती है। आदिवासी साहित्य का अपना वृहद इतिहास है। जिस की परंपरा में लोकगीत एवं लोक कथाएं भरे पड़े हैं जो आदिवासी साहित्य को समृद्ध करते हैं।अनुज लुगुन ने कहा कि आदिवासी समाज की अभिव्यक्ति उसकी ज्ञान परंपरा है। लोक गाथा में जो संदेश है वह आदिवासी समाज का लोक चिंतन है कई मौखिक अभिव्यक्ति अभी हैं जिनका अनुवाद अभी तक नहीं हो सका है। आदिवासी ज्ञान परंपरा एवं उसके चिंतन का वैश्विक संदर्भ रहा है जिसको व्यापक फलक पर देखा एवं परखा जाना चाहिए। जब खड़ी बोली हिंदी अपना विकास कर रही थी ठीक उसी वक्त आदिवासी साहित्य की लिखित परंपरा भी धीरे-धीरे समृद्ध हो रही थी। आदिवासी साहित्य आदिवासी समाज की समस्याएं संघर्ष और राजनीतिक चेतना प्रखर है,जो आज देखा जा रहा है।
महादेव टोप्पो ने कहा आदिवासी साहित्य की परंपरा लोकगीत एवं लोक कथाओं से होकर गुजरती है जिसका प्रकृति से गहरा संबंध रहा है। 1970 80 के दशक में आदिवासी साहित्य का नया स्वरूप उभर कर सामने आ रहा था जिसमें सामाजिक सांस्कृतिक और राजनीतिक आंदोलनों की अभिव्यक्ति मुखर हो रही थी। 90 के दशक के बाद बड़ी संख्या में नए आदिवासी लेखक उभर कर आए जो मुख्यधारा के पत्र-पत्रिकाओं में आदिवासी साहित्य को सामने लाने का कार्य कर रहे थे।
इसी कड़ी में आदिवासी विमर्श को रेखांकित करते हुए अनुज लुगुन ने कहा कि पारंपरिक मूल्यों मिथकों को आधुनिक संदर्भ में व्याख्या करने का जो कार्य हो रहा है वह आदिवासी विमर्श का महत्वपूर्ण अंग है।
इस सत्र में कई सवाल आम जनों द्वारा पूछे गए जिसका संतोषजनक जवाब दिया गया।
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