दिनांक- 9 फरवरी 2020
प्रेस विज्ञप्ति संख्या-142
ऐसे लोग जिन्होंने अपने समाज-अपने संस्कृति के लिए बहुत कुछ किया है...
कैनवास पर जब जेपी भरते हैं रंग, तो सजीव हो जाती है कलाकृति...
जनजातीय संस्कृति व रीति रिवाज को बचाने में लगे हैं जयप्रकाश मरांडी...
यूं तो जनजातीय समाज कला-संस्कृति और प्रकृति के बेहद करीब रहता है और प्रकृति की उपासना भी अलग-अलग तरीके से करता है, पर दुमका जिले के काठीकुंड प्रखंड के नयाडीह के रहने वाले जेपी उर्फ जयप्रकाश मरांडी एक ऐसा चिर परिचित नाम है, जिसने अपने कैनवास के जरिये जनजातीय संस्कृति को बचाने और उसके प्रकृति प्रेम को दर्शाने का काम किया है. जेपी के पिता स्टीफन मरांडी सरकारी स्कूल में अध्यापक थे. वे पहले तो चाहते थे कि बेटा भी सरकारी नौकरी करे, पर बेटे की अभिरूचि कैनवास और ब्रश पर थी. वह रंगों से खेलना चाहता था और अपनी परिकल्पनाओं को रंग देना चाहता था. सो उनके पिता ने कभी उसपर दवाब नहीं बनाया. जेपी ने कैनवास पर रंग भरने की बारीकियां प्रख्यात चित्रकार ललित मोहन राय से सीखी, उसके बाद प्राचीन कला केंद्र चंडीगढ़ से डिग्री भी ली. उनके बनाये गये पेंटिंग्स की डिमांड भी बहुत रही. कई जगहों पर प्रदर्शनी लगाने का अवसर भी मिला. लोगों ने उनकी कला को सम्मान भी दिया और सराहा भी.
जेपी बताते हैं कि उन्होंने हमेशा ही जनजातीय संस्कृति को केंद्रित किया और उसे कैनवास पर उतारा. रीति-रिवाज और आदिवासियों की जीवन शैली पर बनी कलाकृतियों की खूब मांग रही. उन्होंने कुछ बच्चों को फाइन आर्ट की ट्रेनिंग भी दी और अपने ज्ञान को बांटने का प्रयास किया. वर्तमान में जेपी इसाफ के साथ मिलकर काम कर रहे हैं और बैम्बू क्राफ्ट में डिजाइनर के तौर पर अपने अनुभवों से उत्पादों को नये ट्राइबल क्लेवर में लाने का प्रयास कर रहे हैं. बकौल जेपी आदिवासियों की पहचान कला-संस्कृति और उसका प्रकृति प्रेम ही है. युवाओं को अपनी संस्कृति को बचाना होगा. पारंपरिक कला को प्रोत्साहित करना होगा. आधुनिकता अच्छी बात है, पर परंपरा, पारंपरिक रीति रिवाज और अपनी संस्कृति को भी साथ लेकर चलना होगा।
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