Monday 17 February 2020

दिनांक- 12 फरवरी 2020
प्रेस विज्ञप्ति संख्या-150

डॉ प्रमोदिनी हांसदा यूं तो किसी पहचान की मोहताज नहीं है लेकिन वे आज जिस मुकाम तक पहुँचे हैं उसके पीछे कई कहानियां है।कई कठिनाइयों को पार कर उन्होंने सफलता पाई है।बहुत ही साधारण परिवार में जन्मी डॉ प्रमोदिनी ने परिवार की कमियों को अपनी ताकत बनाया।माता पिता की इच्छाओं को पूरा करने की सोच एवं जीवन मे कुछ करने की दृढ़ इच्छा शक्ति से वे आज जनजातीय समाज मे अपनी एक अलग पहचान रखती हैं।डॉ प्रमोदिनी ने जिदातो बालिका उच्च विद्यालय पाकुड़ से कक्षा 1 से 10 तक की शिक्षा ग्रहण की।फिर वे भागलपुर चली गयीं।लगभग 10 वर्षों तक वे भागलपुर में ही रही। जहाँ से उन्होंने उच्च शिक्षा ग्रहण की।पीएचडी की डिग्री भी हाशिल की।सर्व प्रथम वर्ष 1981 में उन्होंने एस पी कॉलेज के पीजी हिंदी डिपार्टमेंट में अपना योगदान दिया।तिलका मांझी विश्वविद्यालय से अलग कर सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय विवि बनाने की मांग रखने वाले बुद्धिजीवियों में वे भी शुमार रहीं।कई मंचों से आवाज उठाया।संघर्ष किया।1992 में सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय बनने के बाद वे विश्वविद्यालय के कई प्रशासनिक पदों पर भी रहे।रजिस्ट्रार, प्रॉक्टर तथा प्रो वीसी के पद पर रहकर उन्होंने अपने अनुभव से विश्विद्यालय को पहचान दिलायी।साथ ही वे हिंदी विभाग के एचओडी,देवघर कॉलेज तथा एसपी कॉलेज के प्राचार्य भी रहे। 12 लोगों ने उनके मार्गदर्शन में पीएचडी भी हासिल की।वर्ष 2006 में जानकी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित उनकी पुस्तक "संथाली एवं हिंदी साहित्य का पुनरात्मक विश्लेषण" को लोगों ने खूब पसंद किया।

डॉ प्रमोदिनी कहती हैं कि कभी मैंने अपने परिवार पर किसी चीज़ के लिए दबाव नहीं बनाया।अपने माता पिता से मैंने बहुत कुछ सीखा।माता पिता से मुझे हमेशा ताकत मिली।मैं एक अच्छे मुकाम तक पहुँचूँ ये मेरे माता पिता की इक्षा थी और उनकी इच्छा को पूरा करना मेरा सपना था।कभी पुस्तक का आभाव तो कभी पैसे की लेकिन मेरा सपना इन सब कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण था।वे बताती है उन दिनों पाकुड़ से एक ही ट्रेन ऐसे थी जो मुझे दिन के वक़्त में भागलपुर पहुँचाती थी और इसके लिए मुझे ठंडी के दिनों में भी 1 बजे जागना पड़ता था क्योंकि ट्रेन रात्रि 2:30 बजे पाकुड़ से खुलती थी।

डॉ प्रमोदिनी कहती हैं कि जनजातीय समाज की संस्कृति सबसे धनी और संपन्न है।जिसने भी इस संस्कृति को अपने में ढाला है उनका जीवन बहुत सुखद होता है।यह संस्कृति समाज को जोड़ने का कार्य करती है।प्रकृति से प्रेम करना यह हमारी संस्कृति सिखाती है।उन्होंने कहा कि हमारे युवाओं को संघर्ष और समय का सदुपयोग सीखना होगा।जिन चीज़ों की जरूरत अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में नहीं है उनसे मुँह मोड़ना सीखें।सीमित संसाधनों में अपने भविष्य का निर्धारण करें।भटकाव से खुद को बचाये ताकि यह समाज और संस्कृति बेहतर रहे।

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