Saturday 29 July 2017

दुमका 29 जुलाई 2017
प्रेस विज्ञप्ति संख्या - 430 
वासुकीनाथधाम के झालमुढ़ी की कुछ और ही बात है...
श्रावणी मेला के दौरान बाबा पर जलार्पण करने वाले श्रद्धालु कई ऐसे होते हैं जो फलहारी होते हैं और जलार्पण के पष्चात् उन्हें कुछ नमकीन खाने का मन करता है और हर भारतीय के तरह उन्हें भी झालमुढ़ी ही एक अच्छा विकल्प नजर आता है। मेला के दौरान आपको इनकी दुकान गर्दन पर बड़े कटोरों एवं अन्य छोटे बर्तन के साथ दिखाई देते है जिनमें मिकस्चर के साथ कई मसाले रखे होते हैं और ठीक बीच में एक बड़ा बर्तन होता है और उसके नीचे मुढ़ी जिससे झालमुढ़ी बनाई जाती है।
मसलेदार होना ही झाल है एवं भुने चावल के दाने में भी मसालदार होता है। लेकिन वासुकिनाथधाम के झालमुढ़ी का स्वाद आपको कहीं नही मिलेगी। कुछ मुट्ठी मंुगफली, दाल के दाने, सेव, टमाटर, खीरा, मिर्च, धनिया, नारियाल और प्याज के टुकड़े मिलाकर उपर से उबले आलू मिलाया जाता है एवं परोसा जाता है तो श्रद्धालु बिना किसी से बात किये जल्दी-जल्दी चबाकर खा रहे होते हैं। यहां तक अगर वासुकिनाथधाम कि झालमुढ़ी के एक पैकेट को किसी से साझा कर रहे है इस दौरान आपको एक बिल्कुल गैर भारतीय अनुभव प्राप्त होगी यानि खामोषी।
यह झालमुढ़ी इतनी स्वादिष्ट होती है कि श्रद्धालु बार-बार इसे खाते दिखते हैं। आप एक बार वासुकिनाथधाम के झालमुढ़ी को खाकर देखिये वैसे तो केसरिया रंग और बाबा की नगरी में कोई अमीर गरीब नहीं होता लेकिन आपको बड़े-बड़े से लोग भी लाइन में खड़े होकर झालमुढ़ी खाते दिखेंगे। वाकई जब स्वाद की बात होती है तो झालमुढ़ी सबको बराबर बना देता है।



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